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अपने बारे में

  • जबलपुर को हिंदी का गढ़ माना जाता है | एक समय ऐसा था जब यहाँ बड़े बड़े साहित्यकार थे उनके निजी पुस्तकालय थे | नगर में भी कुछ समृद्ध पुस्तकालय थे | समय बदला | अब निजी पुस्तकालय दंतकथा बन गये है अन्य पुस्तकालयो की िस्थति भी उल्लेखनीय नहीं है |
    शोधकर्ताओ को अन्य नगरों की शरण लेनी पढ़ती है |
  • विगत वर्षो में मेने पी.एच.डी और एम.फिल करने वाले शोधाथींयो को निःशुल्क मार्गदर्शन दिया | सामग्री उपलब्ध कराई |
    िस्थतिय को मददेनज़र रखते हुए मैने अपनी जीवन संगनी स्व. डॉ गायत्री तिवारी और पुत्र डॉ. हर्ष कुमार तिवारी से परामर्श किया |
  • हमने अपना निजी पुस्तकालय लोकहित में समर्पित का निश्चय किया और संकल्प लिया की हम एक समृद्ध पुस्तकालय और शोध संस्थान स्थापित व संचालित करेंगे |
  • महाकौशल में ऐसे पुस्तकालय / शोध संस्थान की नितांत आवशयकता है | विरासत को सहेजना जरुरी है |
  • अभी हमारे पास सौ वर्ष से पुरानी पोथियाँ , सौ वर्ष पूर्व की पुस्तके और पत्रिकाएँ है | नया साहित्य भी प्रचुर मात्रा में है |
  • पुरानी वस्तुऐ,दस्तावेज , सिक्के भी है |
  • विभिन्न नगरों में फैले हमारे सहयोगियो और हितचिंततको ने सामग्री सहयोग का आश्वासन दिया है |
  • अभी जो धन लग रहा है हम अपने पास से लगा रहे है | किन्तु हम जानते है की नगर - निगम राज्य शासन और केंद्र शासन के आर्थिक सहयोग के बिना योजना न तो मूर्त रूप ले सकती है न सफल हो सकती है |
  • हम तो विनम्र भाव से सभी से सहायता सहयोग की प्राथना कर रहे है |

डॉ. राजकुमार तिवारी 'सुमित्र'
प्रेरक एवं संरक्षक