भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौर में ऐसे बहुसंख्यक लोग हुए है जो प्रचार प्रसार की आकांक्षा के बिना नेपथया में रहकर राष्ट्रसेवको की सेवा सहायता और राष्ट्र आराधना का कार्य करते है
पं. माखनलाल चतुर्वेदी पं. द्वारका प्रसाद मिश्र, सेठ गोविंददास, सुभद्रा कुमारी चौहान , लक्ष्मण सिंह चौहान तपस्वी सुंदरलाल, कुंजीलाल दुबे से घनिष्ठ रूप में सम्बंधित, मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुकल के साढूभाई पं. दीनानाथ तिवारी उन्ही विरल व्यक्तियों में थे |
जिन्हे समाज और देश के लिए अपना जीवन समर्पित किया किन्तु कभी प्रतिदान नहीं चाहा |
पं. दीनानाथ तिवारी का जन्म 5 सितम्बर 1895 को पचमढ़ी के निकटवर्ती ग्राम शोभापुर में पं. अमृतलाल तिवारी के पुत्र के रूप में हुआ | जबलपुर के राजा गोकुलदास अमृत जी का अत्यधिक सम्मान करते थे | कालांतर में अमृतलाल जी अपने तीन बेटो दीनानाथ प्रेमनारायण और सीताराम के अध्ययन के निर्मित जबलपुर आ गये | दीनानाथ जी पं. रघुवर प्रसाद द्रिवेदी को शिस्यतव ग्रहण किया |
बाद के वर्षो में उन्होंने चित्रकला और आयुर्वेद की उपलब्धियाँ प्राप्त की किन्तु जीविकोपार्जन का प्रारंभ मिशन स्कूल और मिशन प्रेस से हुआ |
दीनानाथ जी का पहला आलेख 1917 के कन्यकुब्ज हितकारी में प्रकाशित हुआ | सहितयिक एवं पत्रकरीय रूचि के कारण वे सेठ गोविन्ददास के हिंदी पुस्तक मंदिर के मेनेजर नियुक्त किये गये | उन्होंने कर्मवीर, श्री शारदा और लोकमत के संपादकीय विभाग में काम किया | कुछ समय एक मिशनरीज को हिंदी और संस्कृत पढाई | संपादन - संसोधन में उन्हें महारत हासिल थी |
बड़े परिवार के मुखिया होने के नाते दीनानाथ जी राजनीति में खुलकर सामने नहीं आये किन्तु सवतत्रता सेनानियों के पर्चे बटवाने, सभा का इनतजाम करने तथा फरार सेनानियों को घर में ठहरने का काम बराबर करते रहे |
तिवारी जी सन 1915 से सन 1983 तक जबलपुर के साहित्यक, सांस्क्रतिक, शैक्षनिक, सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रो के विशिष्ट व्यक्तित्व माने जा रहे है |
उनका मूलमंत्र था - परहित सरिस धर्म नहि भाई | अनुशासन और मर्यादा उनके जीवन के अभिन्न अंग थे |
12 अक्टूबर 1983 को तिवारी जी का देहावसान हुआ और जबलपुर ने हितकारी व्यक्तितव खो दिया |